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ज़र्रे मे रहगुजर छोड जाउंगा
पह्चान अपनी दूर तलक छोड जाउंगा
खामोशियो की मोत गवारा नही मुझे
शीशा हू टूटकर भी खनक छोड जाउंगा
वो तकरीबन 290 है सब के सब मै कुछ न बात है उंनके लिये पैसा कोई मायने नही रखता वो इस देश मे हिन्दी और ब्लोग के जरिये देश मे वो क्रांति ला रहे है जो अब तक कोई ला न पाया था ..........21 वी सदी का एक नया हिन्दुस्तान ...नई पत्रकारिता ... भटकी हुआ व्यव्स्था...भटका हुआ समाज ...भटकी हुई पत्तकारिता ..और अचानक एक नयी क्रांति जनाब भडास बार बार यही साबित कर रहा है कि हिन्दुस्तान मे जब जब ब्लोग का नाम लिया जायेगा भडास का नाम सबसे उपर लिया जायगा ..ऐसा नही यह ब्लोग सिर्फ सरकार . समाज की ही पोल खोल रहा है अपितु यह उस हर बात हो हमारे समाने एक नई मिसाल पेश कर रहा है .... यह मिसाल उस वक्त दी जा रही है जब हिन्दी और अंग्रेजी मे एक वाक दोड चल रही है क्योंकि हिंसा व आतंक के खिलाफ और लोकतंत्र के पक्ष में खड़े होने वाले ये गुमनाम सिपाही स्वयं भी लोकतंत्र विरोधियों और मीडिया के भष्ट लोगो से खतरे मे पड सकते है दुनिया की दूसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा होने के लिहाज से देखें तो हिंदी में ब्लॉगों की संख्या अपेक्षा से बहुत कम दिखेगी। लेकिन इसके कारण स्पष्ट हैं। टेलीफोन, कंप्यूटर, इंटरनेट, बिजली और तकनीकी ज्ञान जैसी बुनियादी आवश्यकताएं पूरी किए बिना कंप्यूटर और इंटरनेट को तेजी से लोकप्रिय बनाने की आशा नहीं की जा सकती। दूसरे, आर्थिक रूप से हम इतने सक्षम और निश्चिंत नहीं हैं कि ऐसी किसी तकनीकी सुविधा पर समय, श्रम और धन खर्च करना पसंद करें, जो अपरिहार्य नहीं है। तीसरे, हमारा समाज संभवत: पश्चिम के जितना अभिव्यक्तिमूलक भी नहीं है। बहरहाल, आर्थिक तरक्की के साथ-साथ इन सभी क्षेत्रों में स्थितियां बदल रही हैं जिसका असर ब्लॉग की दुनिया में भी दिख रहा है।
इसके लिये सबसे पहले मे यशव्ंत जी और रूपेश श्रीवास्तव जी को देना चाहूंगा जो हर पोस्ट पर अपनी राय जरुर देते है ndtv India और कई बडे मीडिया हाउस इस ब्लोग के बढते कदमो से सकते मे है
जय भडास
क्योंकि सच बताते है हम