रविवार, मई 17

ब्लू फिल्म जूते और लोकतंत्र


चुनाव की रण भेरी समाप्त हो गई .इस बार खूब नारे बाज़ी हुई ,अरे भाई नारे बाज़ी ना ऐसा तो हो ही नहीं सकता ,नारे बाज़ी भी ऐसी की अपने घर को आग लगी अपने ही चिराग से -समाजवादी पार्टी में तो जया और आज़म मे इतनी ज्यादा बन आई की समाजवादी के अमर सिंह को आगे आकर यह कहना पड़ा की लड़ाई बहुत बढ गई हालत यहाँ तक है की जया की ब्लू फिल्म भी बाज़ार में आने वाली है,ऐसा नहीं जनाब इस बार बात ब्लू फिल्म पर आकर रुक गई इससे पहले तो इतना हुआ जिसने हिन्दुस्तां का सीना चोडा जरुर हो सकता है ,अरे भाई वक्त वक्त पर साम्प्रदाय की आग में जलने वाला हिन्दुतान पहली बार खुश सा दिख रहा था ,अरे भाई इस बार एकता की नई परिभाषा हमारे सामने मौजूद थी ,यह जूतों का लोकतंत्र बन गया ,जूते ऐसे वेसे नहीं महंगे महंगे जूते ,शहर वालों के जूते गाँव वालों के जूते ,लेकिन पता नहीं इन जूतों का जन्म कहा हुआ था इन्होने ना तो जाती पाती देखी और ना ही कोई कद देखा ,बस शक्ल देखी और धडाम ....................ना कोई कद देखा और ना शरीर......आडवाणी पिटे .वितमंत्री पिटे अरे भाई अमेरिका में बुश को जूता उस वक्त पड़ा था जब वो अपने पद से इस्तीफा दे चुके थे ,मुझे पता है आप हिन्दुस्तानी लोग इतराते अधिक हो ,लेकिन सच में मेरे लिए यह एक सुखद अनुभव है की कम कम से हमारा जूता तो जाति ,रंग भेद नहीं जानता
शायद कभी गांधी ने भी नहीं सोचा होगा की उनके हिन्दुस्तान के हर व्यक्ति में इतना मैल भर गया है ..लेकिन शायद वो इतरा रहे हो की कम से कम हिन्दुतान की जूते तो जाती पाति से कोसो दूर है

1 टिप्पणियाँ:

इष्ट देव सांकृत्यायन ने कहा…

अब गान्धी आएं तो दंग रह जाएंगे यह देख कर कि भारत के नेताओं ने उनके बताएअ रास्ते पर चलकर कितनी तरक़्की कर ली है.