कहने को तो द्रश्य सम्पादक हूँ मैं ,यानी ख़बरों का पहला दर्शक ,जो ख़बरों को सबसे पहले देखता है ,वो भी बिना किसी ब्लर किये हुए ,पत्रकारिता की बिरादरी से बेहद दूर माने जाने वाले वीडियों एडिटर का दर्द शायद एडिटोरियल वाले नहीं जानते ,और ना ही टेली- प्रोम्प्टर पढने वाले जानते है ,लेकिन खामोशी के साथ अपना दर्द अपने तक सीमित रखने वालों की ज़िन्दगी उस वक्त बदरंग होती है......जब इंसान -इंसान को को मारता है ,और एडिटोरिअल वाले चीखते है जल्दी काटो ,जल्दी काटो विसुअल्स आ गए ,जिस व्यक्ति का हाथ और गला कटा है उस पर ब्लर कर देना ,कितना आसान होता है ,उनके लिए सिर्फ यह कह देना की ब्लर लगा देना ,लेकिन हम जानते है दिल और अपनी भावनाओं को किस तरह दबाया जाता है ,उन के हर चीथड़े {मॉस से सने हुए }पर हम ब्लर लगाते है ,अपनी सवेदनाओ को दबाते है ,फिर बैठ जाते है ,फिर बड़े बड़े lcd tv पर देखते है की सच में एक बार फिर इंसान ने इंसान को मारा है ,फिर दुसरी खबर पर लग जाते है ,कही कोंई लूट पाट,कही कोंई चीख पुकार फिर कोंई बलात्कार ,लड़की के कपडों को किस तरीके से दिखाना है ,उसकी छट पटाहट को किस तरके से दिखाना है ,उसको सिसकियाँ भरते हुए आंसू की दर्द नाक आवाज़ को कितना तेजी से सुनाना है ,,,,,,,,बस यही तो यह हमारी जिंदगी ,हमारी जिंदगी
सोमवार, जून 29
गुरुवार, जून 11
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न्यूज़ चैनलों की स्थिति :
स्थिति
चैनल
अंक (प्रतिशत में)
1
आजतक
18.3
2
इंडिया टीवी
15.1
3
स्टार न्यूज़
13.8
4
आईबीएन -7
9.8
5
एनडीटीवी इंडिया
9.5
6
ज़ी न्यूज़
8.6
7
न्यूज़ 24
5.9
8
तेज
5.3
9
समय
4
10
डी डी न्यूज़
3.8
11
लाइव इंडिया
2.3
12
इंडिया न्यूज़
2.0
13
सीएनईबी
1.8
14
वीओआई
0.7
15
जनसंदेश
0.3
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प्रस्तुतकर्ता
आशीष जैन
मंगलवार, जून 9
शनिवार, जून 6
माँ न तूने आज क्यो बिंदिया लगाई है ?
शहीद के बेटे की दीपावली...
अनामिका अम्बर का ये गीत हिन्दी काव्य मंचो पर बेहद पसंद किया गया है....। इस गीत पर अनेक नगरो में नाटिकाएं भी हुई हैं।
इस गीत में एक 8 साल का बेटा दीपावली के त्यौहार पर अपनी माँ से बार-बार प्रश्न करता है की माँ मेरे पिता जी अभी तक क्यों नही आए हैं...उसकी माँ को पता चलता है की उसका पति और उस बच्चे का पिता सीमा पर युद्ध के दौरान शहीद हो गया है....पर वो अपने बेटे से इस बात को नही कह पाती.....आइये पढ़ते हैं ह्रदय को झकझोर देने वाले इस गीत को....
चारो तरफ़ उजाला पर अँधेरी रात थी।
वो जब हुआ शहीद उन दिनों की बात थी॥
आँगन में बैठा बेटा माँ से पूछे बार-बार।
दीपावली पे क्यो ना आए पापा अबकी बार॥
माँ क्यो न तूने आज भी बिंदिया लगाई है ?
हैं दोनों हात खाली न महंदी रचाई है ?
बिछिया भी नही पाँव में बिखरे से बाल हैं।
लगती थी कितनी प्यारी अब ये कैसा हाल है ?
कुम-कुम के बिना सुना सा लगता है श्रृंगार....
दीपावली पे क्यों ना आए पापा.......................॥
बच्चा बहार खेलने जाता है...और लौट कर शिकायत करता है....
किसी के पापा उसको नये कपड़े लायें हैं।
मिठाइयां और साथ में पटाखे लायें हैं।
वो भी तो नये जूते पहन खेलने आया।
पापा-पापा कहके सबने मुझको चिढाया।
अब तो बतादो क्यों है सुना आंगन-घर-द्वार ?
दीपावली पे क्यों ना आए पापा.......................॥
दो दिन हुए हैं तूने कहानी न सुनाई।
हर बार की तरह न तूने खीर बनाई।
आने दो पापा से मैं सारी बात कहूँगा।
तुमसे न बोलूँगा न तुम्हारी मैं सुनूंगा।
ऐसा क्या हुआ के बताने से हैं इनकार
दीपावली पे क्यों ना आए पापा.......................॥
विडंबना देखिये....
पूछ ही रहा था बेटा जिस पिता के लिए ।
जुड़ने लगी थी लकडियाँ उसकी चिता के लिए।
पूछते-पूछते वह हो गया निराश।
जिस वक्त आंगन में आई उसके पिता की लाश।
वो आठ साल का बेटा तब अपनी माँ से कहता है....
मत हो उदास माँ मुझे जवाब मिल गया।
मकसद मिला जीने का ख्वाब मिल गया॥
पापा का जो काम रह गया है अधुरा।
लड़ कर के देश के लिए करूँगा मैं पूरा॥
आशीर्वाद दो माँ काम पूरा हो इस बार।
दीपावली पे क्यों ना आए पापा.......................॥
-अनामिका जैन 'अम्बर'
अनामिका अम्बर का ये गीत हिन्दी काव्य मंचो पर बेहद पसंद किया गया है....। इस गीत पर अनेक नगरो में नाटिकाएं भी हुई हैं।
इस गीत में एक 8 साल का बेटा दीपावली के त्यौहार पर अपनी माँ से बार-बार प्रश्न करता है की माँ मेरे पिता जी अभी तक क्यों नही आए हैं...उसकी माँ को पता चलता है की उसका पति और उस बच्चे का पिता सीमा पर युद्ध के दौरान शहीद हो गया है....पर वो अपने बेटे से इस बात को नही कह पाती.....आइये पढ़ते हैं ह्रदय को झकझोर देने वाले इस गीत को....
चारो तरफ़ उजाला पर अँधेरी रात थी।
वो जब हुआ शहीद उन दिनों की बात थी॥
आँगन में बैठा बेटा माँ से पूछे बार-बार।
दीपावली पे क्यो ना आए पापा अबकी बार॥
माँ क्यो न तूने आज भी बिंदिया लगाई है ?
हैं दोनों हात खाली न महंदी रचाई है ?
बिछिया भी नही पाँव में बिखरे से बाल हैं।
लगती थी कितनी प्यारी अब ये कैसा हाल है ?
कुम-कुम के बिना सुना सा लगता है श्रृंगार....
दीपावली पे क्यों ना आए पापा.......................॥
बच्चा बहार खेलने जाता है...और लौट कर शिकायत करता है....
किसी के पापा उसको नये कपड़े लायें हैं।
मिठाइयां और साथ में पटाखे लायें हैं।
वो भी तो नये जूते पहन खेलने आया।
पापा-पापा कहके सबने मुझको चिढाया।
अब तो बतादो क्यों है सुना आंगन-घर-द्वार ?
दीपावली पे क्यों ना आए पापा.......................॥
दो दिन हुए हैं तूने कहानी न सुनाई।
हर बार की तरह न तूने खीर बनाई।
आने दो पापा से मैं सारी बात कहूँगा।
तुमसे न बोलूँगा न तुम्हारी मैं सुनूंगा।
ऐसा क्या हुआ के बताने से हैं इनकार
दीपावली पे क्यों ना आए पापा.......................॥
विडंबना देखिये....
पूछ ही रहा था बेटा जिस पिता के लिए ।
जुड़ने लगी थी लकडियाँ उसकी चिता के लिए।
पूछते-पूछते वह हो गया निराश।
जिस वक्त आंगन में आई उसके पिता की लाश।
वो आठ साल का बेटा तब अपनी माँ से कहता है....
मत हो उदास माँ मुझे जवाब मिल गया।
मकसद मिला जीने का ख्वाब मिल गया॥
पापा का जो काम रह गया है अधुरा।
लड़ कर के देश के लिए करूँगा मैं पूरा॥
आशीर्वाद दो माँ काम पूरा हो इस बार।
दीपावली पे क्यों ना आए पापा.......................॥
-अनामिका जैन 'अम्बर'
प्रस्तुतकर्ता
आशीष जैन
गुरुवार, जून 4
जिस्म चाहिये तो ले लो .......जिस्म का बाज़ार
एक ऐसी दिल्ली जहां लगते थे सूफी संतो के मेले.....पर अब यहाँ सजते है बाज़ार ......जानना चाहेंगे किस का बाज़ार ....जिस्म का बाज़ार .....दिल्ली की कहानी ....पहली बार मेरी जुबानी ......मंदिर के साथ लगा जहाँ जिस्म का ,,,,बाज़ार पढिये पहली बार ....मेरे साथ ....सिर्फ EXCLUSIVEBHARAT.BLOGSPOT.COM
जल्द आ रहा है .......जिस्म चाहिये तो ले लो .......
जल्द आ रहा है .......जिस्म चाहिये तो ले लो .......
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जिस्म का बाज़ार .....
प्रस्तुतकर्ता
आशीष जैन
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