
कहने को तो द्रश्य सम्पादक हूँ मैं ,यानी ख़बरों का पहला दर्शक ,जो ख़बरों को सबसे पहले देखता है ,वो भी बिना किसी ब्लर किये हुए ,पत्रकारिता की बिरादरी से बेहद दूर माने जाने वाले वीडियों एडिटर का दर्द शायद एडिटोरियल वाले नहीं जानते ,और ना ही टेली- प्रोम्प्टर पढने वाले जानते है ,लेकिन खामोशी के साथ अपना दर्द अपने तक सीमित रखने वालों की ज़िन्दगी उस वक्त बदरंग होती है......जब इंसान -इंसान को को मारता है ,और एडिटोरिअल वाले चीखते है जल्दी काटो ,जल्दी काटो विसुअल्स आ गए ,जिस व्यक्ति का हाथ और गला कटा है उस पर ब्लर कर देना ,कितना आसान होता है ,उनके लिए सिर्फ यह कह देना की ब्लर लगा देना ,लेकिन हम जानते है दिल और अपनी भावनाओं को किस तरह दबाया जाता है ,उन के हर चीथड़े {मॉस से सने हुए }पर हम ब्लर लगाते है ,अपनी सवेदनाओ को दबाते है ,फिर बैठ जाते है ,फिर बड़े बड़े lcd tv पर देखते है की सच में एक बार फिर इंसान ने इंसान को मारा है ,फिर दुसरी खबर पर लग जाते है ,कही कोंई लूट पाट,कही कोंई चीख पुकार फिर कोंई बलात्कार ,लड़की के कपडों को किस तरीके से दिखाना है ,उसकी छट पटाहट को किस तरके से दिखाना है ,उसको सिसकियाँ भरते हुए आंसू की दर्द नाक आवाज़ को कितना तेजी से सुनाना है ,,,,,,,,बस यही तो यह हमारी जिंदगी ,हमारी जिंदगी