अब आगे क्या लिखूं ,क्या सच लिखूं ,बस यही सोच रहा हूँ ,मेरी आँखों के सामने मेरी कहानी सुपरहिट हो रही है ,कम से कम मेरे ऑफिस में तो है ही ..........हर कोई सवाल यहीं पूछ रहा है की यह रोहन आखिर कौन है ???मेरी आँखों के सामने कई लोगो ने उसे कमीना कहां ...गालिया तो और भी थी ,जिन्हें में बयान नहीं कर सकता ..आपको पता ही कहानी का एक जबरदस्त पात्र लोक ने मुझसे कहा है की ऐसा लिखना की लड़की बस खिची चली आ जाए ,अब ब्लॉग में ऐसा क्या लिखूं की लडकियां अपने आप पट जाए ....खैर कहानी को आगे बढाता हूँ ,दीप्ती ने कल ब्लॉग पडा ,शायद कुछ बोलना चाहती थी ,लेकिन जुबान और शब्द उसका साथ नहीं दे पा रहे थे ,मेरे से आखिरकार उसे कहना है पड़ा कि तू मुझे इतनी अच्छी तरीके से जानता है कब से ....और बोला क्यों नहीं .. मैं वहाँ से चला आया ,ऑफिस में नए लोग आये है हर बार कि तरह लोक को एक और लड़की पसंद आ गई है ,सोनिया {भूत पूर्व प्रेमिका }जो कभी बन ना पाई } को बोला है कि यार उसके सामने मेरी थोडी सी बात बना दे ...थोडी तारीफ़ कर दे plz ... ऑफिस कि जबरदस्त लड़की उसकी प्रेमिका नहीं बन पाई जी हाँ भाई उसने एक लड़की को प्रपोज़ किया ,लड़की ने अटका कर रखा था ,लोक को लगा कि थोडा वक्त लगेगा और जल्द वो उसके पास दौडती हुए हां जायेगी ,लेकिन यह क्या एक हफ्ते से ज्यादा बीत गया ,वो तो ना दौडी और ना ही उसके पास आई ,लोक हार गया क्योंकि एक रोज़ उसका फोन आया और जवाब मना हो गया ,,,जनाब आज भी फोन पर बातें करतें है,उसी लड़की से ,उनकों लगता है कि वो ऐसा करने से पट जायेगी ,लेकिन ऐसा नहीं होने वाला है ,दरअसल यह एक तीने वाला सवाल है लोक अपनी जिंदगी में सबसे बुरी तरह से हारा है ,वही वो अब नए लोगों पर हाथ आजमा रहा है ,लेकिन मुझे मालुम है कि लोक के लिए उसके घरवालों ने एक लड़की देख ली है ,अरे हां भाई लोक के लिए ,शादी भी होने वाली है जल्द ,आप सब को आना है ,यह जल्द ही आप को वो कहता हुआ दिखेगा ,वही दुसरी तरफ कहानी का लेखक यानी मैं किस मझदार में हूँ मैं नहीं जानता ,मेरी जिंदगी में फिर से कोई शामिल हुआ है ...एक दोस्त की तरह ....पता नहीं जिंदगी में कब शामिल हो गई मैं नहीं जानता ....मैंने अपनी जिंदगी के कई सच मैंने ऊनको बता दिए ,,,,मैंने क्यों बताए मैं नहीं जानता ??लेकिन सच में मैं उनको एक बेहतर दोस्त मानता हूँ या फिर अब मानने लगा हूँ ,यह मेरा आकर्षण तो नहीं ,,,,,बस इसी का एक डर लगातार बना रहता है ,लेकिन कुछ सोच के दिल को दिलासा देता रहता हूँ और फिर शांत हो जाता हूँ ,,आप क्या सोच रहे है कि मैं ऐसा क्या सोचता हूँ ,सुनना चाहेंगे क्या ,,,बस यहीं सोचता हूँ कि मेरी तो गर्ल फ्रेंड है ,,,,मैं नहीं जानता कि यह सब कुछ क्या चल रहा है ,लेकिन मैं कुछ गलत नहीं कर रहा ,आज उससे मिलने जा रहा हूँ ,हम फिर कहीं सपनो को निर्माण करेंगे उनको अपने हाथों से संजो कर घर वापिस रख देंगे ,अगले शनिवार के लिए ....मैं अपनी नई दोस्त के बारे में बात दूँ नाम महक ...{काल्पनिक नाम } हम कब दोस्त बने मैं नहीं जानता .,..बस इतना याद है कि उन्होंने कहा था कि मैं तुम लोगो को गोद ले लूंगी ,और मैंने कहा था कि फायदा किसका होगा और उन्होंने झट से कहा था कि इसमें कोई शक नहीं फायदा तुम्हारा ही होगा और हम एक दम मुस्कराने लगे थे .....उनको नहीं मालुम हम हसें क्यों थे ,बस वही मुलाक़ात और हम सब दोस्त बन गए ,सादगी मुझे हमेशा से बेहतर लगती है ,और वो जो है वो मेरे लिए एक नए दोस्त कि जगह भरता भी है ,सोनिया हमारी दोस्ती में दिलचस्पी दिखाने लगी है उसने मेरे से पूछा भी है कि तू उनके सामने चुप क्यों रहता हूँ ??? दरअसल उसको कोई शक हुआ है जो वो बोल नहीं पा रही.....मैं नहीं बोल पाया ,मैं उसको जवाब भी नहीं दे पाया ,मैं क्यों नहीं दे पाया ,यह सवाल मेरे अन्दर आज भी कौंध रहा है रोहन और सोनिया आज भी दोस्त है ,दोस्ती का एक नया रूप मेरे सामने मौजूद है ,मैं चाहने पर भी उसको यह दिलासा नहीं दे पा रहा की जो मैंने लिखा है की वो सच है ,वो मेरे से बार बार यहीं पूछ रही है की जो मैंने कहा है वो सच है ,मैं उसे दिलासा क्यों दूँ ? आखिर दोस्तों के बीच मेरा इन सवालों का क्या काम है ,रोहन अपने भरोसे में लेने की पूरी कोशिश कर रहा है वो कामयाब भी हो गया है आखिर लडकियां और वो भी माध्यम वर्ग की सोच तो भरोसे में आज सोनिया फिर से है ,मैं अब नहीं चाहता की मैं सोनिया को और समझाऊ ,वही दूसरी तरफ लोक ने एक लड़की पटा ली है ,अरे मन ही मन में एक नई इन्टर्न आई है ,जनाब का दिल फिर से फिसल गया है ,भाई साहाब को शायद नहीं मालुम की मंगल सूत्र के साथ उनका समझौता होने वाला है ,खैर जिस लड़की ने उन्हें मन किया था वो बहुत तेज़ है ,वो उनको अब फोन करती है देर तक बातें भी करती है ,दोस्त क्या होते है वो उस वक्त भूल जाते है ,लेकिन कहानी की टी आर पी तो लोक के कारण ही है ,अरे मैं तो आपको बताना ही भूल गया -कहानी का कौन सा पात्र कहां है ,ऑफिस में उस पर चर्चाये होती है ,लोग अब मुझसे पूछते है की प्लीज़ उनके नाम बता दो ,मैं लेखक हूँ ,मैं शुद्ध कदापि नहीं हूँ ,मेरे अन्दर भी मिलावट होने लगी है ,मैं नहीं जानता यह क्या हो रहा है मुझे ??? मैं तो किसी और के लिए यहाँ आया था ,यह भटकाव केसा ?? हम राजस्थान जा रहे है ,वो बहुत खुश है ,उसके बाबू की यह पहली सैलरी है ,उसकी आँखों में यह ख़ुशी पहली बार देखी है ,मुझे कोई लालच नहीं ,मुझे पैसों से प्यार नहीं है ,मैं आपको ऐसा इसलिए बता रहाहूँ क्योंकि बनियों को नोटों से बहुत प्यार होता है ,राजस्थान में हमारा मंदिर है ,वहीँ हम घूमेंगे ,मैं नहीं जानता की ख़ुशी क्या होती है बस उसके चेहरे पर जब यह चमक देखता हूँ तो लगता काश यह सब कुछ पहले ही होजाता..........महक शानदार व्यवहार की है ,वो दोस्त बहुत बनाती है यह किसी की शक्सियत का बखान कादापी नहीं है यह मैं अपने सामने एक नई कहानी का निर्माण कर रहा हूँ ,अब हम सॉरी .........मैं उनके साथ पसंद करता हूँ ,क्यों ....सच में नहीं जानता ,लेकिन इतना जानता हूँ की कोई तो बात है ...यह बेहतर भविष्य की दोस्ती का संकेत है ,या फिर यह दिलासा है ...जो कई दिनों से मैं अपने आप को दिला रहा हूँ ,आखिर लडकियां और वो भी माध्यम वर्ग की सोच तो भरोसे में आज सोनिया फिर से है ,मैं अब नहीं चाहता की मैं सोनिया को और समझाऊ ,वही दूसरी तरफ लोक ने एक लड़की पटा ली है ,अरे मन ही मन में एक नई इन्टर्न आई है ,जनाब का दिल फिर से फिसल गया है ,भाई साहाब को शायद नहीं मालुम की मंगल सूत्र के साथ उनका समझौता होने वाला है ,खैर जिस लड़की ने उन्हें मन किया था वो बहुत तेज़ है ,वो उनको अब फोन करती है देर तक बातें भी करती है ,दोस्त क्या होते है वो उस वक्त भूल जाते है ,लेकिन कहानी की टी आर पी तो लोक के कारण ही है ,अरे मैं तो आपको बताना ही भूल गया -कहानी का कौन सा पात्र कहां है ,ऑफिस में उस पर चर्चाये होती है ,लोग अब मुझसे पूछते है की प्लीज़ उनके नाम बता दो ,मैं लेखक हूँ ,मैं शुद्ध कदापि नहीं हूँ ,मेरे अन्दर भी मिलावट होने लगी है ,मैं नहीं जानता यह क्या हो रहा है मुझे ??? मैं तो किसी और के लिए यहाँ आया था ,यह भटकाव केसा ?? हम राजस्थान जा रहे है ,वो बहुत खुश है ,उसके बाबू की यह पहली सैलरी है ,उसकी आँखों में यह ख़ुशी पहली बार देखी है ,मुझे कोई लालच नहीं ,मुझे पैसों से प्यार नहीं है ,मैं आपको ऐसा इसलिए बता रहाहूँ क्योंकि बनियों को नोटों से बहुत प्यार होता है ,राजस्थान में हमारा मंदिर है ,वहीँ हम घूमेंगे ,मैं नहीं जानता की ख़ुशी क्या होती है बस उसके चेहरे पर जब यह चमक देखता हूँ तो लगता काश यह सब कुछ पहले ही होजाता..........महक शानदार व्यवहार की है ,वो दोस्त बहुत बनाती है यह किसी की शक्सियत का बखान कादापी नहीं है यह मैं अपने सामने एक नई कहानी का निर्माण कर रहा हूँ ,अब हम सॉरी .........मैं उनके साथ पसंद करता हूँ ,क्यों ....सच में नहीं जानता ,लेकिन इतना जानता हूँ की कोई तो बात है ...यह बेहतर भविष्य की दोस्ती का संकेत है ,या फिर यह दिलासा है ...जो कई दिनों से मैं अपने आप को दिला रहा हूँ ,उनको अपने भाई से बहुत प्यार है ,कहानी का नया चरित्र वो ही बता पाएंगी ,बस इतना जानता हूँ की उनको कभी प्यार नहीं हुआ .....क्या सोच रहे की मुझे केसे मालुम ..मैंने पूछा......आप अब मेरे चरित्र पर उंगलियाँ उठा सकते है ,मेरी खामोशी आपको कुछ सोचने पर मजबूर कर सकती है ,लेकिन मैं दोस्त बना चाहता हूँ ,बहुत अच्छा ,,,,क्योंकि एक वक्त मैंने अपने दोस्त को खोया है ,जिसके साथ मैं बातें कर सकूँ ,अरे हां उनको भी बहुत जल्दी रोना आता है मेरी तरह ,आज तक मैंने अपने बारे में किसी को पूरा नहीं बताया लेकिन मैं अचानक उनको यह सब कुछ केसे बता दिया ,यह मैं नहीं जानता.... कहानी का लोक यहाँ पर भी आ गया है नए कलेवर के साथ ..भाई साहब के पास sms का जबरदस्त कलेक्शन है ,वो नेट से बैठ कर कॉपी करते है ,लोक अब महक को sms करता है उनको अपने भाई से बहुत प्यार है ,कहानी का नया चरित्र वो ही बता पाएंगी ,बस इतना जानता हूँ की उनको कभी प्यार नहीं हुआ .....क्या सोच रहे की मुझे केसे मालुम ..मैंने पूछा......आप अब मेरे चरित्र पर उंगलियाँ उठा सकते है ,मेरी खामोशी आपको कुछ सोचने पर मजबूर कर सकती है ,लेकिन मैं दोस्त बना चाहता हूँ ,बहुत अच्छा ,,,,क्योंकि एक वक्त मैंने अपने दोस्त को खोया है ,जिसके साथ मैं बातें कर सकूँ ,अरे हां उनको भी बहुत जल्दी रोना आता है मेरी तरह ,आज तक मैंने अपने बारे में किसी को पूरा नहीं बताया लेकिन मैं अचानक उनको यह सब कुछ केसे बता दिया ,यह मैं नहीं जानता.... कहानी का लोक यहाँ पर भी आ गया है नए कलेवर के साथ ..भाई साहब के पास sms का जबरदस्त कलेक्शन है ,वो नेट से बैठ कर कॉपी करते है ,लोक अब महक को sms करता है उनको अपने भाई से बहुत प्यार है ,कहानी का नया चरित्र वो ही बता पाएंगी ,बस इतना जानता हूँ की उनको कभी प्यार नहीं हुआ .....क्या सोच रहे की मुझे केसे मालुम ..मैंने पूछा......आप अब मेरे चरित्र पर उंगलियाँ उठा सकते है ,मेरी खामोशी आपको कुछ सोचने पर मजबूर कर सकती है ,लेकिन मैं दोस्त बना चाहता हूँ ,बहुत अच्छा मेरे सामने वो शायद वहाँ भी शुरू हो गया है ,उनको वो मेसेज करता है ,वो भी शेंटी सा ,,और एक दिन .............लोक ने उस कहा ,,,मुझे प्यार हो गया है यानी लोक को एक बार फिर हो गया है ................पता है किससे ???? महक से ......सच में """"जिस दिन से चला हूँ, मेरी मंज़िल पे नज़र है, आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा... !!ये फूल मुझे कोई विरासत में नहीं मिले हैं, तुमने मेरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा... !!..बेवक्त अगर जाऊँगा सब चोंक पड़ेंगे, एक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा... !!..पत्थर कहता है मेरा चाहने वाला, शायद उसने मुझे कभी छूकर नहीं देखा... !!.. TO BE CONITINUE
शनिवार, मई 30
मंगलवार, मई 26
प्यार इश्क और मोहब्बत ...exclusive part2
कहानी का अपना चरित्र होता है ,उसके अपने किरदार होता है ,जिसे में गड रहा हूँ ,मैं कोई ऐसा लेखक नहीं जो कहानी के चरित्रों का निर्माण कर रहा हूँ .मेरे सामने जो कुछ घट रहा है वो आपको बयान कर रहा हूँ .हमारे चेनल के नए मालिक का अभी इंटरव्यू पडा ,तो एक बार फिर कलपना की जिंदगी में उड़ रहा हूँ ,मुझे नहीं मालुम की कहाँनी में आगे क्या होगा.अपनी कहानी को आगेबढाता हूँ ,कहानी में सब चरित्र अब बड़े हो रहे ,स्टार प्लस के किसी शो की तरह कदापि नहीं ,वो मीडिया में सभी नए आये ,उन्हें लगता ही की उनके सामने जो घट रहा है वो हकीकत है ,मैं चाह कर भी उनका साथ नहीं दे पा रहा हूँ ,रोहन अब तेज़ चलने की कोशिश करने लगा है और कोशिश भी क्यों ना करें....जो वादा मैंने किसी से किया है वो भी किसी की आँखों में सपने सज़ा के आया है ....ऑफिस में जब नए आये तो अच्छे दोस्त थे .जहा से सीखा वहाँ बहुत प्यारे दोस्त थे ,लेकिन यहाँ आकर लोग समझोता नहीं करते वो टूटते है किसी अपने पर ......यह तड़पन रोहन के लिए बिलकुल नया नहीं है .हाँ ऑफिस में नए आये तो रोहन की दोस्ती एक लड़की सी हुई ,यह हकीकत है की जल्द ही वो अच्छे दोस्त बन गए ,कोई नहीं जानता था की वो एक दिन बहुत अच्छे दोस्त बन जायेंगे मैं भी नहीं ...मुझे मालुम है की खामोशी भी बोलती है ,पर यह केसी खामोशी है उसकी इस खामोशी में तूफ़ान का अंदेशा तो नहीं था ,खैर प्रीटी {काल्पनिक नाम्} उसके साथ रहने लगी ,बाहार चाय पीने जाते तो वो उसे अपने साथ ले कर जाता, अब कहानी पेचीदा हो रही है ,कहानी का हर चरित्र मासूम बन्नने की कोशिश कर रहा है ,मैं भी ,रोहन भी .कोई लोक को आप सभ जानते ही है ,खैर दोस्ती उन लोगों की थी ऐसा नहीं मेरे साथ थी ,मैंने दोस्ती की मजबूती यहाँ तक देखी की उसने अपनी जिंदगी की उन मरहमों को खोल कर दिखाया जो हालातों ने उस पर कोई उसके परिवार को दिए थे ,,,,,एक लड़की केसे अपने पारिवार के साथ अकेली कड़ी रहती है जब उसके साथ कोई नहीं है ,उसके पापा को गए हुए वक्त बीत चुका है ...मैं भावनाओं का सम्मान करता है यह सहानुभूति नहीं है ,यह दिल से पैदा होता है , माँ की हालत खराब रही वो फिर भी दोड़ती रही ,अस्पातालों में ,राशन की दुकानों में अकेली खड़ी रहीं ,फिर भी नाम आँखों से मुस्कराते रही ,उसे पता ही की उसको दोड़ना भी है ,उसको पता है और मैं तो उसका दोस्त कभी था है नहीं ,फिर भी मैं उसे कभी बोल नहीं पाया ,केसे बोल दूँ की तू रोहन की अच्छी दोस्त है तो मेरी भी बन जा ,उसके दिल में तो यही आता की जबरदस्ती चेप हो रहां है ,बस यही जिंदगी चल रही थी ....हमारी लिस्ट हमारे मेनेजमेंट के द्बारा हमारे काम की तारीफ़ कर रही थी ,हमारे काम की तारीफ़ हुए मैं भी खुश था ,फिर एक दिन ....ऑफिस की केंटिन में अचानक यूँही प्रीटी की क्लास की एक लड़की से दोस्ती हुई .मेरे कोई मन नहीं था अब दौर बदल रहा सोनिया नाम है उसका वक्त के साथ वो अच्छे दोस्त बनी ...केसे बनी मैं नहीं जानता .....बस इतना जानता हूँ की आज वो हमारी दोस्त है मेरे जरिये वो रोहन की दोस्त बनी आज वो मुझसे अच्छे दोस्त है ...रात को बातें करते है ,,सपने देखते है ,कल्पना की जिंदगी में महान होती है ....उसको नहीं मालूम है मीडिया क्या है ......पापा की लाडली है पहली सैलरी मिली है पापा पे घर वालों को कपडे दिलाये है ,पापा के सीने से लिपटना पसंद है ,.उससे नहीं मालुम सपने और वास्तविकता में अंतर होता है उससे नहीं मालूम है जिन्हें वो अपना समझ रही वो किसी पे का कब का ,,,रोहन का प्यार सपने नही देखता है ,रात भर जागता है ,अपनी दोस्तों से उसके बारे में बातें करता है लेकिन उसको नहीं मालुम उसका रोहन अब सोता नहीं वो बातें करता है रात भर ,ऑफिस में वो सपने दिखता है उसके लिए नहीं अब किसी और के लिए ,अब सोनिया मुझे कहती भी है की वो शानदार है उस्ससे बातें करना उसे पसंद है अब वो उसको मिस करती है शायद सोनिया नहीं जानती की उस का अपना रोहन जिससे वो रात भर बातें करती है वो किसी और के लिए यहाँ पर आया है ..........जिन सपनो को वो अपनी मासूम आँखों से देख रही वो टूट जायेंगे यह बात मुझे मालूम है मैं नहीं जानता की इस कहानी का अंत कब होगा ......लेकिन कोई खूब रोयेगा ...क्योंकि दोस्ती यहा कबकी ख़त्म हो चुकी है .....कुछ दिनों पहलों हम बाहर चाय पीने जा रहे थे ....मैं ,लोक और रोहन -सोनिया ,कहानी में शब्दों को देखते रहे अब रोहन और सोनिया के नाम साथ साथ आने लगे है ,रोहन नादान है वो नहीं जानता है की एक दिन आयेगा जब उसके इस झूट का पता चल जाएगा ,मैं नहीं जानता की क्या होगा ,हाँ तो हम चाय पीने जा रहे थे सब सोनियाके साथ ......अचानक मैंने पीछे देखा तो प्रीटी अपनी डेस्क से हमको देख रही थी ,वो सोच रही होगी की कल तक जो मेरे साथ चाय पीने जाता था आज वो मुझे पूछता नहीं >>>>मुझे पहली बार लगा की शायद प्रीटी की जिंदगी उसको छट पटाने पर ,मजबूर कर रही है ,प्रीटी के हालत पर मुझको तरस नहीं आता ...क्योंकि वो इससे कमज़ोर हो रही है ,मैं उसका अच्छा दोस्त नहीं बन सकता हूँ शायद उसके आंसूं मैं नहीं साफ़ कर पाया ,,,लेकिन दुःख है मेरे अपने ने ऐसा किया है ,,,,,,,,,,शायद जिंदगी यहीं है ,,,,,,मैं लेखक हूँ ,इस बात को लेकर मैं संसय भी है ,क्योंकि मैं सिर्फ भावानीय सवेंदना ही व्यक्त कर पाता हूँ ...
.ऐसा नहीं मैं महान हूँ ,मुझे पहला प्यार कॉलेज में हुआ ,बाद में पता चला की जिसें में प्यार करता हूँ वो मुझसे प्यार नहीं करती .........फिर भी हमने सफ़र तय किया ,वो मुझे बहुत प्यार करती है ,जिंदगी में जब मुझे सबसे ज्यादा जरुरत थी मेरे साथ कोई नहीं था वो थी ........बॉय फ्रेंड का सहीं हक़ मैं उससे कभी नहीं बता पाया ,वो बोलती है की टी शर्ट पहनों ....मैं नहीं पहनता ,,,मैं मसाले वाली चीजे बह्युत खाता हूँ वो नहीं खाती ,,,,फिर भी हम साथ है ,या फिर समझोते ज्यादा है ....चार साल से ज्यादा हो गए है ,लड़ाई भी होती है ,मैं रात को उसके साथ ही खाना खाता हूँ अरे भाई वो फोन पर होती है ,,,उसको याद है मैंने परसों क्या खाया था लेकिन मुझे नहीं याद ..ऑफिस में क्या चल रहा है आप उससे पूछ लीजिये ...उसको केसे मालुम है मैंने बताया है रात को ...फोन पर .to be continue
प्रस्तुतकर्ता
आशीष जैन
रविवार, मई 24
प्यार इश्क और यह क्या ? EXCLUSIVE
प्यार क्या होता है ,क्या यह एक इतफाक है ,या यह एक परम्परा है जो कई सदियों से अनजाने साए के साथ हमारे साथ चलती आ रही है ,दरअसल मेरा यह लेख इसी परम्पराओं को झुट्लाते हुए एक कहानी का निर्माण करता है ,जो बेशक मेरी हो सकती है मेरे दोस्तों की हो सकती है या फिर ऐसा भी हो सकता हैं की आगे जो मैं लिखने वाला हूँ वो आप के आस पास कही घट रही हों ,चैनल यानी मेरा ऑफिस -वक्त तक़रीबन ७:५० के आस पास मेरी कहानी में तीन पात्र है जो तीन दोस्त भी है यह वही पात्र है जिनके आस पास पूरी कहानी घुमती रहती है पहले पात्र का नाम तो आशीष है जो वास्तविक है दुसरे पात्र का नाम रोहन है और तीसरे का नाम लोक है और कहानी का 4th पात्र एक लड़की .........................................नहीं बाबा दो ............................माफ़ी चाहूँगा ..............तीन ......चार ......दस या फिर बारह है,
मैंने भी आपकी तरह सुना था की प्यार एक बार होता है शायद यह सच ना हो .इस कहानी का आशीष सिर्फ कहानी को गढ़ रहा है ,यह आपको याद रहे रोहन मेरा चार साल से अधिक वक्त का दोस्त है ,उम्मीद के मुताबिक मेरी हर भावनाओं को वो और मैं उसकी सवेंदना को समझता रहा हूँ ,उसको उसका प्यार कॉलेज में मिल चुका है ,मुझे याद है उस वक्त आँखों में आंसू लेकर अपने सीने से उसकी यादों और उसकी हर बातों को वो मुझसे शेयर किया करता था ,आज बेशक हालत कुछ और है ....यह उसकी प्यार की मजबूती है या फिर कुछ और ....सच में मैं नहीं जानता ,,,,उसका प्यार उससे बातें करता है ,उससे दिल की हर बात समझता है ,कभी कभी वो इतराता भी है ,लेकिन फिर एक बार आँखों को नीचा करके ना जाने क्यों आँखों में आँसूं के समंदर भर लाता है शायद मुझे नहीं कहना चाहिए -लेकिन उसकी जिंदगी में सब कुछ सहीं नहीं चल रहा है ,उसकी तरह मेरे कही दोस्तों को लगता है की वो और उसका प्यार दरअसल एक दुसरे के लिए बने है नहीं ....लेकिन मैं खुद्दार हूँ ,कहानी का लेखक भी मैं ही हूँ -मैं गलत नहीं हो सकता ,,,,,बस यही चीज़ मुझे खा जाती है ,हफ्तें में एक दिन हमारा ऑफ होता है मैं अपनी जिंदगी के सबसे प्यारें दोस्त से मिलता हूँ और वो ..........................................वो .................................वो शायद नहीं ......दरअसल उसके साथी की कहानी मेरे दोस्त की जिंदगी पर हमेशा से हावी रही है ,,,और हो भी क्यों ना ,,,,,उसने कही सवाल अपनी प्रेमिका से करने की कोशिश भी की ....लेकिन उसके जवाबों में वो इतराता नहीं ...और ना ही शर्माता है .बस गुम सुम सा अकेला घबरता है .......फिर तड़प के अपने आप से एक सवाल पूछता है की अफेयर को तीन साल से भी ज्यादा हो गए है ..फिर भी अपने सर को जुन्झुनाते हुए अपने आप से कहता है की नहीं वो सच में सच्ची है ....................कहानी का तीसरा पात्र लोक है ,जनाब शानदार है ,कॉलेज में रूतबा था ,अरे भाई पढाई में नहीं सिर्फ लड़कीबाजी में ,जनाब की कौन से गर्ल फ्रेंड है और कौन सी दोस्त यह कोई नहीं जानता ,कॉलेज में इंग्लिश ओनर्स को ताड़ते थे ,अब थोड़े से बड़े हो गए है ,अब सैलरी भी मिल रही बेशक मोटी तनख्वाह ना हो लेकिन ख्वाब बेहद शानदार है ,हताश भी हो जाते है अगर थोडा सा काम ज्यादा करवा लो तो ....तो हाँ कॉलेज में नए आये तो एक ग्रुप में शामिल हुए ...कुछ दोस्त मिले कुछ बहुत ज्यादा अच्छे मिले जिस ग्रुप में थे वही प्यार कर बैठे ,,,,हालत तो उसवक्त खराब हुई जब पता लगा की अरे भाई जिस से प्यार -----अरे भाई माफ़ी चाहूंगा -प्यार इन जनाब को हर रोज़ प्यार होता है ,और ऐसा वेसा नहीं ,रात भर बातें करते है ,फिर शुभ रात्री कह कर सुबह का मेसज टाइप करते है -कहानी का दूसरा रूप उनके एक नए चेहरे को बतलाता हैं वो बताता है की सच में उससे प्यार हुआ ,उसकी तड़पन उसकी बातों पर मोहर लगाती है ,संजीदगी यहाँ तक की बन्दा रोया भी है ...लेकिन यह क्या साहब वो तो चुप हो गया एक नई सुबह के लिए ....TO BE CONTINUE
मैंने भी आपकी तरह सुना था की प्यार एक बार होता है शायद यह सच ना हो .इस कहानी का आशीष सिर्फ कहानी को गढ़ रहा है ,यह आपको याद रहे रोहन मेरा चार साल से अधिक वक्त का दोस्त है ,उम्मीद के मुताबिक मेरी हर भावनाओं को वो और मैं उसकी सवेंदना को समझता रहा हूँ ,उसको उसका प्यार कॉलेज में मिल चुका है ,मुझे याद है उस वक्त आँखों में आंसू लेकर अपने सीने से उसकी यादों और उसकी हर बातों को वो मुझसे शेयर किया करता था ,आज बेशक हालत कुछ और है ....यह उसकी प्यार की मजबूती है या फिर कुछ और ....सच में मैं नहीं जानता ,,,,उसका प्यार उससे बातें करता है ,उससे दिल की हर बात समझता है ,कभी कभी वो इतराता भी है ,लेकिन फिर एक बार आँखों को नीचा करके ना जाने क्यों आँखों में आँसूं के समंदर भर लाता है शायद मुझे नहीं कहना चाहिए -लेकिन उसकी जिंदगी में सब कुछ सहीं नहीं चल रहा है ,उसकी तरह मेरे कही दोस्तों को लगता है की वो और उसका प्यार दरअसल एक दुसरे के लिए बने है नहीं ....लेकिन मैं खुद्दार हूँ ,कहानी का लेखक भी मैं ही हूँ -मैं गलत नहीं हो सकता ,,,,,बस यही चीज़ मुझे खा जाती है ,हफ्तें में एक दिन हमारा ऑफ होता है मैं अपनी जिंदगी के सबसे प्यारें दोस्त से मिलता हूँ और वो ..........................................वो .................................वो शायद नहीं ......दरअसल उसके साथी की कहानी मेरे दोस्त की जिंदगी पर हमेशा से हावी रही है ,,,और हो भी क्यों ना ,,,,,उसने कही सवाल अपनी प्रेमिका से करने की कोशिश भी की ....लेकिन उसके जवाबों में वो इतराता नहीं ...और ना ही शर्माता है .बस गुम सुम सा अकेला घबरता है .......फिर तड़प के अपने आप से एक सवाल पूछता है की अफेयर को तीन साल से भी ज्यादा हो गए है ..फिर भी अपने सर को जुन्झुनाते हुए अपने आप से कहता है की नहीं वो सच में सच्ची है ....................कहानी का तीसरा पात्र लोक है ,जनाब शानदार है ,कॉलेज में रूतबा था ,अरे भाई पढाई में नहीं सिर्फ लड़कीबाजी में ,जनाब की कौन से गर्ल फ्रेंड है और कौन सी दोस्त यह कोई नहीं जानता ,कॉलेज में इंग्लिश ओनर्स को ताड़ते थे ,अब थोड़े से बड़े हो गए है ,अब सैलरी भी मिल रही बेशक मोटी तनख्वाह ना हो लेकिन ख्वाब बेहद शानदार है ,हताश भी हो जाते है अगर थोडा सा काम ज्यादा करवा लो तो ....तो हाँ कॉलेज में नए आये तो एक ग्रुप में शामिल हुए ...कुछ दोस्त मिले कुछ बहुत ज्यादा अच्छे मिले जिस ग्रुप में थे वही प्यार कर बैठे ,,,,हालत तो उसवक्त खराब हुई जब पता लगा की अरे भाई जिस से प्यार -----अरे भाई माफ़ी चाहूंगा -प्यार इन जनाब को हर रोज़ प्यार होता है ,और ऐसा वेसा नहीं ,रात भर बातें करते है ,फिर शुभ रात्री कह कर सुबह का मेसज टाइप करते है -कहानी का दूसरा रूप उनके एक नए चेहरे को बतलाता हैं वो बताता है की सच में उससे प्यार हुआ ,उसकी तड़पन उसकी बातों पर मोहर लगाती है ,संजीदगी यहाँ तक की बन्दा रोया भी है ...लेकिन यह क्या साहब वो तो चुप हो गया एक नई सुबह के लिए ....TO BE CONTINUE
लेबल:
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प्रस्तुतकर्ता
आशीष जैन
बुधवार, मई 20
एंकर और मोडल में फर्क है भाई .....
आखिरकार लोकतंत्र के चौथे स्तंभ ने यह स्पस्ट कर दिया कि हम सबकी अपनी-अपनी दुकाने है जिनमे बैठने वाले वाले लोग पत्रकार का चोला पहने हुए है जिसमे खबरें विज्ञापन के लिए बिकती है ना कि पत्रकारिता के लिए ....हम आपको बता दे कि खबर वही बिकाऊ होगी जिसमे sex होगा ,खेल होगा .गाने -बजाने होंगे और मोजूद होंगे कुछ हसीनाओं के चेहरे ....जी हां जनाब ०- हम बात किसी गली -मोहल्ले के नही बल्कि आपके -अपने मीडिया की कर रहे है ,इन दुकानों को चलाने के लिए मौजूद होते है कुछ हसिनाओ की खुशबु लिए अपने न्यूज़ वाले यानी नए जमाने की नयी पत्रकारिता ..यानी महिला पत्रकार ......हम अगर शब्दों को सही करे तो महिला एंकर .............यानी नया पर्दा नया रूप नया मुकाम और नया और जबरदस्त ग्लैमर लिए पत्रकारिता -यह हकीक़त है की इस नए पत्रकारिता का आगाज हिंदुस्तान में हो चूका है -आप टीवी खोले कर देखिए तो सही -ऐसा लगता है मानो ये महिलाए रेम्प के बजाए न्यूज़ स्टूडियो मे अपने कपडे उतार देंगी ......इंग्लैंड मे तो यह हो चुका है ...खैर पत्रकारिता को बेचकर अपनी दुकान चलाने वालो को यह टी.र.पी का नया फार्मूला लग रही है --कुछ लोगो ने तो इस पर आवाज भी उठाई लेकिन हम कहा बाज आने वाले थे -चलिए अब राज खुले तो मैं बता दू हाल ही मे एक नया न्यूज़ चैनल आया पता चला कि वहा पर जॉब के चांस है मेरी महिला मित्र के साथ हुआ था यह हादसा सारे प्रशन पूछने की बाद वहा के hr ने कहा मैं आपसे संतुष्ट हूँ अब यह बताओ मेरे लिए क्या कर सकती हो ? आख़िर इस जिस्म की ज्यादा भूख मीडिया मैं क्यों ? ...मैं महिला पत्रकार हूँ -मेरे अपने आदर्श है मैं लड़की हूँ वही लड़कीं जिसके बारे में सिमोन द बोवा ने कहा था कि वो पैदा नहीं होती, बनाई जाती है। लोग मुझे तरह-तरह से बनाते हैं। मुझे सेवा करने लायक बनाते हैं। सुंदर दिखने लायक बनाते हैं। वो मेरा तन तराशने से पहले मेरा मन तराशते हैं। बताते हैं, खूबसूरत दिखना मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा मकसद है। वो पहले अपने आनंद के लिए मेरा इस्तेमाल करते हैं, फिर अपने कारोबार के लिए। वो मेरी कोमलता से अपना सामान सजाते हैं, मेरी सुंदरता से अपनी दुकान। मैं जब studio par hoti हूं तो सबसे पहले अपने वजूद पर पांव रखती हूं। मुझे मालूम रहता है कि ये नाजुक संतुलन, ये खूबसूरत लचीलापन, ये shandaar kaaya , ये रोशनियां, ये चमक-दमक मेरे लिए नहीं, एक बड़े कारोबार के लिए है। मुझे मुस्कुराना है, मुझे बातें kahanii हैं, मुझे अपनी घबराहट, अपने आंसू रोकने हैं, अपने उस शर्मीलेपन को कुचलना है जो किसी बचपन से कहीं से मेरे साथ चला आया। मुझे आत्मविश्वास और कामयाबी से भरपूर नजर आना है, इस डर को दबाना है कि जब ये तराश नहीं रहेगी, जब वक्त की रेखाएं मेरे जिस्म पर दिखाई देने लगेंगी, जब जिंदगी की आपाधापी में मेरे पांव कांपते रहेंगे, तब मेरा क्या होगा। मैं लड़की हूं। अपनी त्वचा से प्यार करती हूं, सुंदर दिखना चाहती हूं, कोमल बने रहना चाहती हूं, लेकिन नहीं जानती कि इन मासूम इच्छाओं के लिए मुझे कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। सिर्फ मुझे मालूम है कि सुंदरता तन से कहीं ज्यादा मन में होती है, दृश्य से कहीं ज्यादा आंख में होती है, वो तराशी नहीं जाती, अपने वजूद और अपनी शख्सियत की एक-एक शै के बीच ढलती है, और बहुत कम ऐसे मौके आते हैं जब वो अपनी पूरी कौंध के साथ दिखाई पड़ती है। दरअसल वो रैंप पर सैकड़ों लोगों के बीच की नुमाइश में जितना नजर आती है उससे कहीं ज्यादा उन रिश्तों में झलकती है जिसमें देह ही नहीं, रूह तक पारदर्शी हो जाती है। बढ रहे न्यूज़ चेनल और उनकी दुकानों में अब उनके संस्थान भी शामिल हो चुके है ,जहा पर एंकर बनाने के लिए एक मोटी राशि ली जाती है ,जितने बड़े चैनल उतनी बड़ी राशि .अगर आप की कोई चाहत है की आप को लोग देखे .....और आप सुन्दर नहीं है आपके पास कोई काया नहीं है तो घबराते क्यों है भाई ...पत्रकारिता की नई बिरादरी आपको शामिल करेगी अपने बाज़ार में ...और आप बन जायेंगे एंकर विचार -आशीष और प्रियदर्शन जी से प्रेरित
लेबल:
हसीनाओं के चेहरे
प्रस्तुतकर्ता
आशीष जैन
मंगलवार, मई 19
यहाँ लाशों का मंजर क्यों है........
आदर्शों के विचार सिद्धांत कब बन जाते है ,सच में पता नहीं लगता ....इस बार मेरे ब्लॉग में जो लेख मैं प्रकाशित कर रहा हूँ ,वो मेरा नहीं अपितु ndtvkhabar.com से लिया गया है ,जो मेरे गुरु और साथ में आदर्श रहे प्रियदर्शन द्बारा लिखा गया है
पिछले साल 2 अक्टूबर को, यानी महात्मा गांधी की जयंती पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मुताबिक एक और इतिहास बना। अमेरिकी सीनेट ने एटमी करार पर मोहर लगाकर भारत की नाभिकीय अस्पृश्यता ख़त्म की। क्या इस इस इत्तफाक पर हमें हैरान होना चाहिए कि जीवन भर अहिंसा की बात करने वाले और ऊर्जा और उत्पादन के देसी तौर-तरीक़ों पर भरोसा करने वाले महात्मा गांधी को उनके देश ने उनके जन्मदिन की सौगात के रूप में एटमी करार दिया... या हमें उदास होना चाहिए कि किसी की नज़र इस इत्तफाक पर नहीं पड़ी और किसी ने उस विद्रूप पर विचार नहीं किया, जो महात्मा गांधी और एटमी करार को मिलाने से बनता है...?
कहते हैं, कभी अपने एक भाषण में खुद को कुजात गांधीवादी बताने वाले डॉ राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि 21वीं सदी में या तो महात्मा गांधी बचे रहेंगे या परमाणु बम बचा रहेगा। एक ढंग से देखें तो दुनिया भर के परमाणु बम किन्हीं जखीरों में छिपे हुए हैं और किसी को डराने का काम भी नहीं करते। एक दौर में वियतनाम में बुरी तरह अपने हाथ जला लेने वाले अमेरिका को अपने परमाणु बम याद नहीं आए। सोवियत संघ टूट गया और उसको उसके परमाणु बम नहीं बचा सके। चीन की ताकत उसके परमाणु बम से कहीं ज्यादा उसके आर्थिक धमाके से है।
दूसरी तरफ आज की हिंसा और नफरत में महात्मा गांधी की जगह नहीं दिखती। लेकिन सच्चाई यह है कि सांस्कृतिक बहुलता का मुद्दा हो या पर्यावरण की सजगता का, हम महात्मा गांधी की तरफ लौटने को मजबूर हैं। यह धारणा धीरे-धीरे मज़बूत हो रही है कि भोग और लालच की मारी इस दुनिया में न्याय और बराबरी की तरफ लौटने का सबसे भरोसेमंद रास्ता गांधी की गली से होकर जाता है। शायद यह मुहावरा सबसे ज्यादा सार्थक आने वाले दिनों में ही होगा कि मजबूरी का नाम महात्मा गांधी।
लेकिन मामला परमाणु बम या महात्मा गांधी की प्रासंगिकता का नहीं है, एक देश के तौर पर भारत के वर्तमान और भविष्य का है। महात्मा गांधी ने जिस भारत के लिए अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी, उसे न परमाणु बम की ज़रूरत थी, न परमाणु ऊर्जा की। गांधी उसे बिल्कुल देसी ज़रूरतों और देसी तकनीक पर केंद्रित एक देश बनाना चाहते थे। यह सच है कि गांधी के सपनों का भारत आज़ादी के बाद से ही बिखरना शुरू हो गया, लेकिन आज उसके भटकाव कहीं ज़्यादा विचलित करने वाले हैं। ऐसा लग रहा है, जैसे इस दौर का भारत अपनी सारी राजनीतिक-वैचारिक बहसें पीछे छोड़ चुका है और उसके सामने सिर्फ आर्थिक महाशक्ति बनने का लक्ष्य है। जो बहुत बड़ी गैर-बराबरी इस देश को लगभग दो हिस्सों में बांट रही है, उस पर किसी की नजर नहीं है, उसकी किसी को परवाह नहीं है।
यह दरार सिर्फ आर्थिक नहीं है, उसके सामाजिक और सांप्रदायिक पहलू भी हैं। एक तरफ आरक्षण के सवाल पर उलझे हुए अगड़े और पिछड़े हैं, दूसरी तरफ मजहबी पहचान के सवाल पर अकेले पड़े मुसलमान और घायल पड़े ईसाई हैं। इसके अलावा वह विशाल दलित और आदिवासी आबादी बिल्कुल हाशिये पर है, जो हर जगह से बेदखल की जा रही है। भारतीय राजनीति इन विशाल समुदायों और इन बड़े सवालों को नज़रअंदाज़ कर रही है।
दरअसल यह भारतीय राजनीति की बदली हुई प्राधमिकता है, जो एटमी करार को ऐतिहासिक बताती है और खुद को सही साबित करने के लिए एक पुराने सामाजिक आंदोलन का मुहावरा चुराते हुए नाभिकीय अस्पृश्यता जैसा शब्द इस्तेमाल करती है। अस्पृश्यता के विरुद्ध आंदोलन आजादी के दौर का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा रहा और महात्मा गांधी ने इसे लगभग अपनी निजी मुहिम की तरह लिया। अस्पृश्यता का दंश कितना तीखा है और उसने भारतीय समाज को कैसी टूटन दी है, जो यह बात समझते हैं, उन्हें एटमी संदर्भ में भारत की अस्पृश्यता के रूपक की विडंबना शायद कुछ ज़्यादा समझ में आएगी।
दरअसल जो लोग भारत की एटमी अस्पृश्यता का सवाल उठा रहे हैं, वे एक और सच्चाई को गलत संदर्भ में पेश कर रहे हैं। भारत ने जब एटमी परीक्षण किए, तभी यह साफ था कि इस मुद्दे पर उसे अकेला रहना पड़ सकता है। इस लिहाज से यह चुना हुआ अकेलापन ज्यादा था, थोपी हुई अस्पृश्यता नहीं। भारत के पास इस अस्पृश्यता को तोड़ने के और भी तरीके थे - उन तरीकों का हमने इस्तेमाल नहीं किया, क्योंकि उन्हें अपनी आणविक और वैश्विक नीति के विरुद्ध पाया।
इस पूरे संदर्भ को भुलाकर मनमोहन सिंह ने जिस तरह एटमी करार को अमेरिकी मेहरबानी बताया है और जॉर्ज बुश जैसे विवादास्पद राष्ट्रपति को सभी भारतीयों का प्रिय साबित करने की कोशिश की है, उससे साफ है कि उनका अपना भारत है, जो महात्मा के भारत से भिन्न है। वरना महात्मा तो वे थे, जो कभी अमेरिका नहीं गए। यह तय है कि अमेरिकी करार उन्हें उस तरह नहीं लुभाता, जिस तरह आज के रहनुमाओं को लुभा रहा है। वह होते तो शायद आज के भारत की परमुखकातरता पर कहीं ज्यादा दुखी होते।
कहते हैं, कभी अपने एक भाषण में खुद को कुजात गांधीवादी बताने वाले डॉ राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि 21वीं सदी में या तो महात्मा गांधी बचे रहेंगे या परमाणु बम बचा रहेगा। एक ढंग से देखें तो दुनिया भर के परमाणु बम किन्हीं जखीरों में छिपे हुए हैं और किसी को डराने का काम भी नहीं करते। एक दौर में वियतनाम में बुरी तरह अपने हाथ जला लेने वाले अमेरिका को अपने परमाणु बम याद नहीं आए। सोवियत संघ टूट गया और उसको उसके परमाणु बम नहीं बचा सके। चीन की ताकत उसके परमाणु बम से कहीं ज्यादा उसके आर्थिक धमाके से है।
दूसरी तरफ आज की हिंसा और नफरत में महात्मा गांधी की जगह नहीं दिखती। लेकिन सच्चाई यह है कि सांस्कृतिक बहुलता का मुद्दा हो या पर्यावरण की सजगता का, हम महात्मा गांधी की तरफ लौटने को मजबूर हैं। यह धारणा धीरे-धीरे मज़बूत हो रही है कि भोग और लालच की मारी इस दुनिया में न्याय और बराबरी की तरफ लौटने का सबसे भरोसेमंद रास्ता गांधी की गली से होकर जाता है। शायद यह मुहावरा सबसे ज्यादा सार्थक आने वाले दिनों में ही होगा कि मजबूरी का नाम महात्मा गांधी।
लेकिन मामला परमाणु बम या महात्मा गांधी की प्रासंगिकता का नहीं है, एक देश के तौर पर भारत के वर्तमान और भविष्य का है। महात्मा गांधी ने जिस भारत के लिए अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी, उसे न परमाणु बम की ज़रूरत थी, न परमाणु ऊर्जा की। गांधी उसे बिल्कुल देसी ज़रूरतों और देसी तकनीक पर केंद्रित एक देश बनाना चाहते थे। यह सच है कि गांधी के सपनों का भारत आज़ादी के बाद से ही बिखरना शुरू हो गया, लेकिन आज उसके भटकाव कहीं ज़्यादा विचलित करने वाले हैं। ऐसा लग रहा है, जैसे इस दौर का भारत अपनी सारी राजनीतिक-वैचारिक बहसें पीछे छोड़ चुका है और उसके सामने सिर्फ आर्थिक महाशक्ति बनने का लक्ष्य है। जो बहुत बड़ी गैर-बराबरी इस देश को लगभग दो हिस्सों में बांट रही है, उस पर किसी की नजर नहीं है, उसकी किसी को परवाह नहीं है।
यह दरार सिर्फ आर्थिक नहीं है, उसके सामाजिक और सांप्रदायिक पहलू भी हैं। एक तरफ आरक्षण के सवाल पर उलझे हुए अगड़े और पिछड़े हैं, दूसरी तरफ मजहबी पहचान के सवाल पर अकेले पड़े मुसलमान और घायल पड़े ईसाई हैं। इसके अलावा वह विशाल दलित और आदिवासी आबादी बिल्कुल हाशिये पर है, जो हर जगह से बेदखल की जा रही है। भारतीय राजनीति इन विशाल समुदायों और इन बड़े सवालों को नज़रअंदाज़ कर रही है।
दरअसल यह भारतीय राजनीति की बदली हुई प्राधमिकता है, जो एटमी करार को ऐतिहासिक बताती है और खुद को सही साबित करने के लिए एक पुराने सामाजिक आंदोलन का मुहावरा चुराते हुए नाभिकीय अस्पृश्यता जैसा शब्द इस्तेमाल करती है। अस्पृश्यता के विरुद्ध आंदोलन आजादी के दौर का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा रहा और महात्मा गांधी ने इसे लगभग अपनी निजी मुहिम की तरह लिया। अस्पृश्यता का दंश कितना तीखा है और उसने भारतीय समाज को कैसी टूटन दी है, जो यह बात समझते हैं, उन्हें एटमी संदर्भ में भारत की अस्पृश्यता के रूपक की विडंबना शायद कुछ ज़्यादा समझ में आएगी।
दरअसल जो लोग भारत की एटमी अस्पृश्यता का सवाल उठा रहे हैं, वे एक और सच्चाई को गलत संदर्भ में पेश कर रहे हैं। भारत ने जब एटमी परीक्षण किए, तभी यह साफ था कि इस मुद्दे पर उसे अकेला रहना पड़ सकता है। इस लिहाज से यह चुना हुआ अकेलापन ज्यादा था, थोपी हुई अस्पृश्यता नहीं। भारत के पास इस अस्पृश्यता को तोड़ने के और भी तरीके थे - उन तरीकों का हमने इस्तेमाल नहीं किया, क्योंकि उन्हें अपनी आणविक और वैश्विक नीति के विरुद्ध पाया।
इस पूरे संदर्भ को भुलाकर मनमोहन सिंह ने जिस तरह एटमी करार को अमेरिकी मेहरबानी बताया है और जॉर्ज बुश जैसे विवादास्पद राष्ट्रपति को सभी भारतीयों का प्रिय साबित करने की कोशिश की है, उससे साफ है कि उनका अपना भारत है, जो महात्मा के भारत से भिन्न है। वरना महात्मा तो वे थे, जो कभी अमेरिका नहीं गए। यह तय है कि अमेरिकी करार उन्हें उस तरह नहीं लुभाता, जिस तरह आज के रहनुमाओं को लुभा रहा है। वह होते तो शायद आज के भारत की परमुखकातरता पर कहीं ज्यादा दुखी होते।
प्रस्तुतकर्ता
आशीष जैन
रविवार, मई 17
ब्लू फिल्म जूते और लोकतंत्र
चुनाव की रण भेरी समाप्त हो गई .इस बार खूब नारे बाज़ी हुई ,अरे भाई नारे बाज़ी ना ऐसा तो हो ही नहीं सकता ,नारे बाज़ी भी ऐसी की अपने घर को आग लगी अपने ही चिराग से -समाजवादी पार्टी में तो जया और आज़म मे इतनी ज्यादा बन आई की समाजवादी के अमर सिंह को आगे आकर यह कहना पड़ा की लड़ाई बहुत बढ गई हालत यहाँ तक है की जया की ब्लू फिल्म भी बाज़ार में आने वाली है,ऐसा नहीं जनाब इस बार बात ब्लू फिल्म पर आकर रुक गई इससे पहले तो इतना हुआ जिसने हिन्दुस्तां का सीना चोडा जरुर हो सकता है ,अरे भाई वक्त वक्त पर साम्प्रदाय की आग में जलने वाला हिन्दुतान पहली बार खुश सा दिख रहा था ,अरे भाई इस बार एकता की नई परिभाषा हमारे सामने मौजूद थी ,यह जूतों का लोकतंत्र बन गया ,जूते ऐसे वेसे नहीं महंगे महंगे जूते ,शहर वालों के जूते गाँव वालों के जूते ,लेकिन पता नहीं इन जूतों का जन्म कहा हुआ था इन्होने ना तो जाती पाती देखी और ना ही कोई कद देखा ,बस शक्ल देखी और धडाम ....................ना कोई कद देखा और ना शरीर......आडवाणी पिटे .वितमंत्री पिटे अरे भाई अमेरिका में बुश को जूता उस वक्त पड़ा था जब वो अपने पद से इस्तीफा दे चुके थे ,मुझे पता है आप हिन्दुस्तानी लोग इतराते अधिक हो ,लेकिन सच में मेरे लिए यह एक सुखद अनुभव है की कम कम से हमारा जूता तो जाति ,रंग भेद नहीं जानता
शायद कभी गांधी ने भी नहीं सोचा होगा की उनके हिन्दुस्तान के हर व्यक्ति में इतना मैल भर गया है ..लेकिन शायद वो इतरा रहे हो की कम से कम हिन्दुतान की जूते तो जाती पाति से कोसो दूर है
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ब्लू फिल्म
प्रस्तुतकर्ता
आशीष जैन
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